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जिले के बारे में

नरसिंहपुर विशेष :

नरसिंहपुर जिला मध्यप्रदेश राज्य के लगभग मध्य भाग में स्थित है । मध्यप्रदेश राज्य की स्थिति भी देश के मध्य भाग में है इसीलिए तो .. मध्यप्रदेश ..अर्थात मध्य भाग का प्रदेश नाम पड़ा है । नरसिंहपुर जिले की स्थिति इस समीकरण के अनुसार विशिष्ट मानी जाती है कि वह देश व राज्य दोनों के मध्य भाग में स्थित है । नरसिंहपुर जिला अपनी विशेष प्राकृतिक स्थिति के कारण भी ध्यान आकर्षित करता है । इसकी उत्तरी सीमा पर विंध्याचल और दक्षिणी सीमा पर पूरी लंबाई में सतपुड़ा श्रृंखला फैली हुई है । उत्तरी भाग में नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है । जिसे गंगा नदी सदृश्य पवित्र माना जाता है । नर्मदा के कछार के रूप में नरसिंहपुर जिले को अनेक प्राकृतिक उपहार मिले हैं । पूर्व में यह क्षेत्र अनेक राजवंशों के अधीन रहकर ऐतिहासिक वीरांगना दुर्गावती के शासनाधीन रहा है । उस काल में अन्य नामों से उल्लेख मिलता है । अठारहवीं शताब्दी में जाट सरदारों ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और भगवान नरसिंह की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई । तब से यहां जिले का मुख्यालय बना और गड़रिया खेड़ा नाम का यह ग्राम नरसिंहपुर ” के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

भौगोलिक स्थिति:

नरसिंहपुर जिला मध्यप्रदेश राज्य के लगभग मध्य भाग में स्थित है । मध्यप्रदेश राज्य की स्थिति भी देश के मध्य भाग में है, नरसिंहपुर जिले की स्थिति भौगोलिक समीकरण के अनुसार विशिष्ट मानी जाती है कि वह देश व राज्य दोनों के मध्य भाग में स्थित है। अक्षांस 22º.45 उत्तर 23º.15 उत्तर, देशांतर 78º.38 पूर्व 79º.38 पूर्व, क्षेत्रफल 5125.55 स्क्वायर किलोमीटर, 359.8 मीटर समुद्र तल से ऊपर। नरसिंहपुर जिला अपनी विशेष प्राकृतिक स्थिति के कारण भी ध्यान आकर्षित करता है। जिले की उत्तरी सीमा पर विंध्याचल और दक्षिणी सीमा में सतपुड़ा श्रृंखला फैली हुई है । उत्तरी भाग में नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है, जिसे गंगा नदी सदृश्य पवित्र माना जाता है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

नरसिंहपुर जिला क्षेत्र अपने भीतर अस्तित्व के प्राचीनतम प्रमाण छुपाये हुये है । जो विभिन्न पुरातात्विक खोजों से समय समय पर उजागर होते रहे हैं । जिले के गजेटियर में उल्लखित पुरातात्विक प्रमाणों के अनुसार जिले के गाडरवारा से दूर भटरा नामक ग्राम में 1872 में पाषाण युग के जीवाश्म युक्त पशु और बलुआ पत्थर से निर्मित उपकरण प्राप्त हुये हैं । अन्य खोज अभियानों में देवाकछार, धुवघट, कुम्हड़ी, रातीकरार और ब्रम्हाण घाट आदि स्थलों में प्रागेतिहासिक अवशेष मिले हैं । बिजौरी ग्राम के समीप चिन्हित शैलामय एवं नक्कासीदार चट्टानी गुफायें भी जिले के अस्तित्व को प्राचीनतम काल से जोड़ते हैं । ब्रम्हाण घाट से झांसी घाट के बीच नर्मदा के तटवर्ती खोज अभियानों में मिले स्तनधारी जीवाश्म तथा पुरातात्विक औजारों के अवशेष जिले को प्रागेतिहासिक इतिहास से जोड़ते हैं ।

अनुकृतियों के अनुसार इस क्षेत्र का संबंध रामायण और महाभारत काल की घटनाओं से रहा है । पौराणिक संदर्भो के अनुसार ब्रम्हाण घाट वह स्थल है जहां सृष्टि के रचियता ब्रम्हा ने पवित्र नर्मदा के तट पर यज्ञ सम्पन्न किया था । चांवरपाठा विकास खंड के बिल्थारी ग्राम का प्राचीन नाम बलि स्थली ” कहा जाता है । इसे राजा बलि का निवास स्थान माना जाता है । महाभारत काल में बरमान घाट के सत्धारा पर पाण्डवों द्वारा नर्मदा की धारा को एक ही रात में बांधने के प्रयत्न का उल्लेख पुराणों में हुआ है । सत्धारा के निकट भीम कुण्ड, अर्जुन कुण्ड आदि इसी को ईंगित करते हैं । कहा जाता है कि पाण्डवों ने वनवास की कुछ अवधि यहां बिताई थी । सांकल घाट की गुफा आदि गुरू शंकराचार्य के गुरूदेव के अध्ययन एवं साधना से जुड़ी है ।

जिले का बरहटा ग्राम महाभारत काल के विराट नगर का अवशेष माना जाता है । यहीं कदम कदम पर मिलतीं पाषाण मूर्तियां और कलात्मक अवशेष से इस किवदंती को बल मिलता है । बचई के निकट पड़ी मानवाकार पाषाण शिला को कीचक” से जोड़ा जाता है । जिले के बोहानी क्षेत्र को पृथ्वीराज कालीन वीरचरित नायकों आल्हा-ऊदल के पिता जसराज व चाचा बछराज का गढ़ माना जाता है । अनेक ऐतिहासिक प्रमाणों खुदाई में प्राप्त प्राचीन वस्तुओं तथा उल्लेखों से जिले का संदर्भ प्राचीन काल से जोड़ने वाले तथ्य और अनुकृतियां बहुतायत में हैं । पर इतिहास ग्रंथों तथा ऐतिहासिक अभिलेखों द्वारा जिले के प्रमाणिक इतिहास की श्रृंखला दूसरी शताब्दी के इतिहास से मिलती है ।

भूगोल नरसिंहपुर:

नरसिंहपुर जिला मध्यप्रदेश राज्य के लगभग मध्य भाग में स्थित है । मध्यप्रदेश राज्य की स्थिति भी देश के मध्य भाग में है इसीलिए तो .. मध्यप्रदेश ..अर्थात मध्य भाग का प्रदेश नाम पड़ा है । नरसिंहपुर जिले की स्थिति इस समीकरण के अनुसार विशिष्ट मानी जाती है कि वह देश व राज्य दोनों के मध्य भाग में स्थित है । नरसिंहपुर जिला अपनी विशेष प्राकृतिक स्थिति के कारण भी ध्यान आकर्षित करता है । इसकी उत्तरी सीमा पर विंध्याचल और दक्षिणी सीमा पर पूरी लंबाई में सतपुड़ा श्रृंखला फैली हुई है । उत्तरी भाग में नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है । जिसे गंगा नदी सदृश्य पवित्र माना जाता है । नर्मदा के कछार के रूप में नरसिंहपुर जिले को अनेक प्राकृतिक उपहार मिले हैं । पूर्व में यह क्षेत्र अनेक राजवंशों के अधीन रहकर ऐतिहासिक वीरांगना दुर्गावती के शासनाधीन रहा है । उस काल में अन्य नामों से उल्लेख मिलता है । अठारहवीं शताब्दी में जाट सरदारों ने यहां भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और भगवान नरसिंह की मूर्ति प्रतिष्ठित करवाई । तब से यहां जिले का मुख्यालय बना और गड़रिया खेड़ा नाम का यह ग्राम “नरसिंहपुर” के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

कृषि:

नरसिंहपुर मुख्यत: कृषि प्रधान जिला है । नर्मदा की ऊपरी घाटी मे स्थित होने के कारण इस जिले में कृषि का महत्व अधिक है । इस जिले की गणना उन जिलों में की जाती है, जहां आवाश्यकता से अधिक अनाज पैदा होता है । यहां कृषि के लिये प्राचीन और नवीन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है । पुराने कृषि यंत्रों में हल, बखर,बैलगाड़ी, हंसिया, खुरपी आदि हैं । नवीन पद्धतियों में थ्रेसर, ट्रेक्टर, हारवेस्टर, विद्युत पंप स्प्रकलर आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है । साथ ही उन्नत बीजों व उत्तम किस्म के खाद तथा कीटनाशक दवाइयों का भी प्रयोग किया जाता है ।

फसलें:

जिले में खाद्यान्न के रूप में मुख्यत: रबी और खरीफ की फसलें उगाई जाती हैं ।

:-रबी की फसल :- रबी की फसलें अक्टूबर-नवम्बर में बोई जाती हैं, और मार्च-अप्रैल में काटी जाती हैं ।

प्रमुख फसलें :- गेंहू, चना, मटर, अलसी, मसूर आदि हैं । खरीफ की फसल :- खरीफ की फसलें जून जुलाई में बोई जाती हैं तथा अक्टूबर में काटी जाती हैं । प्रमुख फसलें :- धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कोदों, कुटकी आदि हैं ।

जिले की व्यापारिक फसलों में सोयाबीन व गन्ना प्रमुख हैं । सोयाबीन उत्पादन में नरसिंहपुर जिला मध्यप्रदेश में प्रथम है । सोयाबीन से तेल व गन्ने से गुड़ तथा शक्कर बनाई जाती है ।

मिट्टी:

जिले में काली दोमट मिट्टी, चिकनी, पथरीली, एवं रेतीली मिट्टी पाई जाती है । काली मिट्टी सबसे अधिक उर्वरा शक्ति वाली एवं भारी मिट्टी है । इसमें गेंहू, चना तथा सभी प्रकार की दालों का उत्पादन होता है । जिले का कलमेटा हार एशिया की सबसे उपजाऊ भूमि में से है । यह गेंहू एवं गुलाबी चना उत्पादन का प्रमुख क्षेत्र है । गाडरवारा की तुअर (अरहर) दाल प्रसिद्ध हैं । यहां जिला स्तर पर कृषि फार्म एवं मिट्टी परीक्षण की प्रयोगशाला है। जहां पर किसानों को कीटनाशक दवाईयां, उन्नत बीजों एवं खाद के संबंध में जानकारी दी जाती है ।

सिंचाई:

जिले में सिंचाई के प्रमुख साधन – कुंआ तालाब, नदी, नहर, एवं नलकूप हैं । जिले के अधिकांश क्षेत्रों में सिंचाई नलकूपों द्वारा की जाती है ।

कृषि उपज मंडी की जानकारी

कृषि उपज मंडी नरसिंहपुर, गोटेगांव, करेली, गाडरवारा, तेंदुखेड़ा

वन संपदा:

जिले में वनों का प्रतिशत 26.55 प्रतिशत है । यहां मिश्रित वन, कटीली झाड़ियों वाले वन, पतझड़ वाले वन पाये जाते हैं । सतपुड़ा एवं विंध्याचल की पहाड़ियों पर सागौन, साल, बांस, साज तथा समतल स्थानों पर महुआ, आम, खैर, अचार, करौंदा, हर्र, बहेड़ा, और आम के वृक्ष पाये जाते हैं । सागौन बहुतायत मात्रा में पाया जाता है । वनों से जलाऊ लकड़ी तथा मकान व फर्नीचर बनाने के काम आती है । जिले में तेन्दूपत्ता संग्रहण का कार्य मई-जून के महीने में किया जाता है । तेन्दूपत्ता से बीड़ी बनाई जाती है । महुआ संग्रहण का कार्य निजी ठेकेदारों द्वारा ग्रामीण स्तर पर किया जाता है । महुआ से कच्ची शराब बनाई जाती है । वनों से आंवला, चिरौंजी, हर्र, बहेड़ा गोंद एवं जड़ी बूटियां प्राप्त होती हैं । आम पूरे जिले में अत्यधिक मात्रा में होता है । यहां के वनों में चीता, भालू, सांभर, जंगली कुत्ते, लकड़बग्घा, बारहसिंगा, बंदर, सियार, खरगोश, जंगली सुअर, हिरण, चीतल, नीलगाय, तेन्दुआ एवं भेड़िया पाये जाते हैं ।

खनिज:

नरसिंहपुर जिले में सोप स्टोन, डोलोमाईट, फायर क्ले, चूने का पत्थर आदि बहुतायत में पाया जाता है । ईसके अतिरिक्त ग्राम गोटीटोरिया के पास की चट्टानों से ईमारती पत्थर निकाला जाता है । फायर क्ले मुख्यत: कन्हारपानी, बचई हींगपानी, व हिरणपुर की पहाड़ियों से मिलता है । जिले की पहाड़ियों से मुरम, गिट्टी प्राप्त की जाती है तथा नदियों से रेत, एवं चूने के पत्थर से सीमेंट व सीमेंट के पाईप बनाये जाते हैं । ग्राम चीचली में तांबे में जस्ता मिलाकर पीतल के बर्तन बनाये जाते हैं ।

उद्योग:

नरसिंहपुर जिले में कई प्रकार के उद्योग धंधे पाये जाते हैं । कृषि यंत्र एवं लोहे का सामान – तेन्दूखेड़ा एवं डांगीढ़ाना में कृषि उपकरणों के अतिरिक्त लोहे का सामान भी तैयार किया जाता है ।

गुड / शक्कर और गन्ना:

जिले में अधिकांश स्थानों पर गुड़ बनाया जाता है । करेली गुड़ की मंड़ी के लिये प्रसिद्ध है । नरसिंहपुर एवं गाड़रवारा में शक्कर की मिलें हैं ।

बीड़ी उद्योग:

यह काम मुख्यतः नरसिंहपुर, गाडरवारा, गोटेगांव मे किया जाता है।

दाल मिल:

तुअर(अरहर) की दाले मुख्यतः नरसिंहपुर और गाडरवारा मे तैयार की जाती है ।

तेल मिलें:

जिले में सोयाबीन, मूंगफली, तिली, आदि के तेल बनाने की अनेक मिलें हैं ।

इसके अतिरिक्त जिले में सीमेंट पाइप, पेपर,प्लास्टिक एवं रबर के अनेक उद्योग स्थापित हैं । चमड़ा (चर्म) का कार्य, मिट्टी के बर्तन,मुर्गी पालन, बकरी पालन, तथा मछली पालन का कार्य जिले में किया जाता है ।

जलवायु:

इस जिले की जलवायु गर्मी के मौसम को छोड़कर सामान्यत: सुखद मानी जाती है । दक्षिण पश्चिम मानसून मौसम को छोड़कर शेष वर्ष हवाएं धीमी गति से बहती हैं । जिले का तापमान न्यूनतम 25-26 डिग्री सेल्सियस से अधिकतम 45-46 डिग्री सेल्सियस तक ऊपर पर चढ़ जाता है । मई का महीना सबसे अधिक गर्म होता है । ग्रीष्म ऋतु में सबसे अधिक गर्मी पड़ती है । एवं अंतिम दिनों में धूल भरी हवायें चलती हैं । मानसून आने से तापमान में उल्लेखनीय गिरावट आ जाती है । जिले की 90 प्रतिशत वर्षा मानसूने के महिनों अर्थात जून से सितंबर में होती है । जिले में औसतन वर्षा 60 दिन होती है एवं औसत वर्षा लगभग 40 ईंच होती है । दिसंबर व जनवरी के माह में सबसे अधिक ठंड पड़ती है । दिन का औसतन तापमान 09 डिग्री रहता है, कभी कभी शीतलहर भी चलती है और कोहरा छाया रहता है ।